प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षेस सदस्य देशों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करने की पहल करके एक साथ कई उपलब्धियां हासिल की है। दक्षेस के मंच पर भारत का जो प्रभाव और रुतबा घट रहा था, इस संगठन के नेतृत्व में जो कमजोरियां आ गई थीं, एक ही झटके में नरेंद्र मोदी ने अपनी इस छोटी से पहल से हासिल कर लिया। अगर इस पहल को एक भूमिका के रूप में देखा जाए तो सामान्यतौर पर यह आमंत्रण सभी दक्षेस सदस्यों के लिए था। किसी भी देश को अतिरिक्त तवज्जो नहीं दी गई। यहां तक कि पाकिस्तान को भी बतौर संगठन के एक सदस्य देश की तरह ही तरजीह दी गई। यानी पाकिस्तान या अन्य किसी सदस्य देश के साथ इस समारोह और उसके बाद के दौरान कोई भेदभाव नहीं किया गया। नरेंद्र मोदी का यह कदम उनकी कथनी और करनी में एकरूपता को दिखाता है। वे हमेशा बराबरी की बात करते हैं और आंख से आंख मिलाकर बातचीत किए जाने के हिमायती हैं।
पहले दिन से नरेंद्र मोदी का यह प्रयास रहा है कि भारत को दुनिया तभी उभरती शक्ति मानेगी जब उसका पड़ोस में असर दिखेगा।
नरेंद्र मोदी का आमंत्रण स्वीकार करके नवाज शरीफ ने भी एक साहसिक कदम उठाया है। पाकिस्तान में भारत के विरोधी सत्ता केंद्रों को दरकिनार किया है। यह एक सकारात्मक संकेत है। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने न कोई विवादास्पद बयान दिया और न ही कश्मीर अलगाववादियों से बातचीत की। दिल्ली के लाल किला को देखा। जामा मस्जिद में गए। दिल्ली उन्हें घर की तरह लगी।
पहले दिन से नरेंद्र मोदी का यह प्रयास रहा है कि भारत को दुनिया तभी उभरती शक्ति मानेगी जब उसका पड़ोस में असर दिखेगा। उन्हें मालूम है कि इस इलाके में चीन एक बड़ा खिलाड़ी है लेकिन वे प्रतिस्पर्धा को तैयार दिखते हैं। इस क्षेत्र में उन्हें अपना स्थान बनाना बखूबी आता है।
पाकिस्तान से हुई यह बातचीत एक गेट टू गेदर थी। इसमें एक दूसरे को जानने समझने के प्रयास पर ज्यादा जोर दिया गया। यह कोई कोई औपचारिक वार्ता नहीं थी। फिर भी टेरर और टॉक के साथ चलने की अटकलों के विराम के लिए मोदी का यह वक्तव्य स्पष्ट संकेत देता है कि बम के धमाके में बातचीत कहां सुनाई देती है।
जो समस्या भारत के सामने है वह यह कि इस बातचीत को नवाज शरीफ कहां तक और कितना आगे बढ़ाएंगे। क्या वे पाकिस्तानी सेना को दरकिनार कर सकते हैं। हालांकि पाकिस्तान सेना की अपनी छवि पाकिस्तान में काफी गिर गई। अपने ही देश में विरोध झेल रही हैं। इसके बावजूद पाकिस्तानी सेना बहुत ताकतवर संस्थान है। उसके वर्तमान और सेवानिवृत्त जनरलों को मोदी से खतरा लगता है। जो संदेश मोदी से गया है वो बहुत स्पष्टहै कि न मैं वाजपेयी हूं, और न मनमोहन सिंह हूं, मै नरेंद्र मोदी हूं। चाहता हूं कारोबार, संबंध ठीक हों, लेकिन बम की आवाज नहीं सुनना चाहता। और न मुझको यह बर्दाश्त होगा। इसके मद्देनजर अगर नवाज शरीफ आगे बढ़ सकते हैं और भारत के खिलाफ जेहाद फैक्ट्री, टेरर फैक्ट्री, पाकिस्तीनी सेना की नफरत और आइएसआइ की भारत के खिलाफ साजिश को वे नियंत्रित नहीं कर पाते और मेरे हिसाब से वे नहीं कर पाएंगे। ऐसे में इस वार्तालाप में बहुत दिक्कतें आएंगी और इसके विफल होने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।
…अब नवाज शरीफ इससे कैसे निपटते हैं यह तो समय बताएगा। हाल में जिओ टीवी ने आइएसआइ और सेना की निंदा क्या कर दी थी नौबत यहां तक आ गई कि तीन टीवी चैनल को बंद करने की पाकिस्तानी सेना ने धमकी दे दी।
नवाज की पाकिस्तान में और खासकर पंजाब में जो पोजीशन है उसके अंदर उनके सरवाइवल के लिए यह जरूरी है कि वे जेहाद फैक्ट्री का एक हाथ पकड़े रहे उन्हें अपने पक्ष में रखें। और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना के साथ ज्यादा छेड़खानी न करें। अब नवाज शरीफ इससे कैसे निपटते हैं यह तो समय बताएगा। हाल में जिओ टीवी ने आइएसआइ और सेना की निंदा क्या कर दी थी नौबत यहां तक आ गई कि तीन टीवी चैनल को बंद करने की पाकिस्तानी सेना ने धमकी दे दी।
पाकिस्तान में खत्म होते लोकतांत्रिक संस्थान को रोकना नवाज शरीफ के लिए बड़ी चुनौती है। इस सबके लिए उन्हें भारत के आर्थिक सहयोग की इस वक्त सख्त जरूरत है। ऐसे में अगर पाकिस्तान से बम के धमाके आने बंद हो जाएं तो भारत उनकी बड़ी मदद कर सकता है। इन परिस्थितियों में भारत पाकिस्तान से बात करे या न करे उसे फर्क नहीं पड़ता है लेकिन पाकिस्तान पर पड़ने वाले फर्क को खारिज नहीं किया जा सकता है।
Courtesy: http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-pakistans-interest-at-stake-11362531.html