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R&AW में हड़ताल
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B Raman | Date:09 Jul , 2023 1 Comment
B Raman
Former, Director, Institute for Topical Studies, Chennai & Additional Secretary, Cabinet Secretariat. He is the author of The Kaoboys of R&AW, A Terrorist State as a Frontline Ally,  INTELLIGENCE, PAST, PRESENT & FUTUREMumbai 26/11: A Day of Infamy and Terrorism: Yesterday, Today and Tomorrow.
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बी रमन की पुस्तक ‘The Kaoboys of R&AW: Down Memory Lane‘ के अंश का हिंदी अनुवाद

1980, R&AW के लिए एक बुरा साल था। 1968 में जब संगठन अस्तित्व में आया, तो इंदिरा गांधी ने इसे कई विशेष रियायतें दीं, जैसे, भर्ती और पदोन्नति के मामलों में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के दायरे से छूट देना, विदेशी दौरों की मंजूरी का अधिकार, आदि।

R&AW के प्रमुख ने दो कमाने संभाली। संगठन के प्रमुख के रूप में वे, सीधी भर्ती, पदों की मंजूरी, विदेश यात्रा आदि के प्रस्ताव कैबिनेट सचिवालय को भेजते थे। कैबिनेट सचिवालय में सचिव के रूप में, उन्होंने इन प्रस्तावों की जांच की और मंजूरी दी। विचार यह था कि यदि R&AW को एक एक्सटर्नल इंटेलिजेंस एजेंसी के रूप में प्रभावी होना है, तो इसे सामान्य लालफीताशाही के अधीन नहीं होना चाहिए। इन विशेष छूटों की मांग थी कि R&AW के प्रमुख अपने अधिकारों का प्रयोग अत्यंत जिम्मेदारी और निष्पक्षता से करें।

नतीजतन, कर्मचारियों ने R&AW को व्यंग्यात्मक रूप से, ‘रिलेटिव्स एंड एसोसिएट्स विंग’ (Relatives & Associates Wings) के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया।

पिछले कुछ वर्षों में R&AW के निचले और मध्यम स्तर के अधिकारियों के बीच यह भावना थी कि इन विशेष शक्तियों का दुरुपयोग, पक्षपात और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। ऐसी भावना इसलिए उत्पन हुई क्योंकि संगठन में सीधी भर्ती करने वालों में से कई ऐसे थे, जो सरकार के सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों से संबंधित थे। पूर्व-विदेश सचिव टी.एन. कौल जैसे वरिष्ठ अधिकारियों के रिश्तेदारों को समायोजित करने के लिए, विदेशों में भारतीय राजनयिक मिशनों में विशेष पद बनाए गए थे।

नतीजतन, कर्मचारियों ने R&AW को व्यंग्यात्मक रूप से, ‘रिलेटिव्स एंड एसोसिएट्स विंग’ (Relatives & Associates Wings) के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया।

कर्मचारियों का प्रबंधन भी ख़राब था। वरिष्ठ (सीनियर) अधिकारियों और कनिष्ठ (जूनियर) स्तर के अधिकारियों के बीच विभाजन था। R&AW एक संभ्रांतवादी (कुलीन/अभिजात वर्ग) संगठन के रूप में विकसित हो गया था, जिसमें वरिष्ठों और कनिष्ठों के बीच बहुत कम बातचीत होती थी। जूनियर्स को लगा कि सीनियर्स को, उनकी और उनकी मुश्किलों की परवाह नहीं थी। आरोप लगे कि पदोन्नति (प्रमोशन) में पारदर्शिता की कमी थी।

R&AW ने अपने कई छोटे कर्मचारियों जैसे लिफ्ट ऑपरेटर, सफाईकर्मी, कैफेटेरिया में काम करने वाले, आदि को वर्षों तक अनुबंधित (कॉन्ट्रैक्ट) दैनिक वेतन कर्मचारी के रूप में रखा। जबकि किसी को भी तीन साल से अधिक समय तक दैनिक वेतन पर रखना, सरकारी नियमों का उल्लंघन होता है, इससे उनमें नाराज़गी बढ़ गई थी।

R&AW के काउंटर-इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी  (CI&S) डिवीजन द्वारा लगातार की जाने वाली सुरक्षा जांच को लेकर, निचले और मध्यम स्तर के कर्मचारियों में भी नाराजगी थी। CI&S डिवीजन, आंतरिक सुरक्षा और विदेशी इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा, संगठन में प्रवेश को रोकने के लिए जिम्मेदार था। अपने आम कार्यों के रूप में, CI&S, शाखाओं की औचक जांच करते और गेटों पर समय-समय पर औचक जांच करते थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी, आधिकारिक दस्तावेज बाहर नहीं ले जा सके। इसके द्वारा कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन के बारे में भी पूछताछ की जा रही थी ताकि अपने साधनों से परे जीवनयापन के सबूत तलाशे जा सकें।

… काओ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया। जिन घटनाओं के लिए बार-बार खतरे की घंटी  रूप में देखा जाना चाहिए था  – उसे दबा दिया गया।

CI&S डिवीजन के काम की आलोचना बढ़ रही थी। इस पर आरोप लगाया गया कि यह डिवीजन निचले और मध्यम स्तर के कर्मचारियों को परेशान कर रहा था, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के लिए यही जांच का पैमाना लागू नहीं किया। यह भी आरोप लगाया गया कि ऐसा सन्देश जा रहा था कि केवल निचले और मध्यम स्तर के कर्मचारी ही, संगठन और देश के साथ विश्वासघात कर सकते है, वरिष्ठ अधिकारी नहीं।

1971 के बाद के वर्षों में R&AW के अंदर कुछ खास खुलापन रिआयत (कुछ भी हो जाने का रवैया) की शुरुआत देखी गई थी, जिसे काओ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया। जिन घटनाओं के लिए बार-बार खतरे की घंटी  रूप में देखा जाना चाहिए था  – उसे दबा दिया गया।

पड़ोसी देश में तैनात एक वरिष्ठ IPS अधिकारी, एक स्थानीय क्लब में, नशे में धुत, एक स्थानीय सेना अधिकारी के साथ उलझ गया और जब वह क्लब से घर जा रहा था तो स्थानीय सेना अधिकारियों के एक समूह ने कथित तौर पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसकी पिटाई की। भारतीय उच्चायुक्त के आग्रह पर इस अधिकारी को वापस बुला लिया गया और वापस उसके राज्य में भेज दिया गया। पश्चिम के एक देश में एक भारतीय राजनयिक मिशन में, प्रथम सचिव (कांसुलर) के रूप में तैनात उसी बैच के एक अन्य IPS अधिकारी ने, अपने पद का फायदा उठाते हुए, खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को, MEA की मंजूरी के बिना, साधारण पासपोर्ट जारी करवाया और उन पासपोर्टों पर मेज़बान सरकार से दीर्घकालिक वीज़ा (Long Term Visa) प्राप्त किया। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, उसने R&AW और IPS से इस्तीफा दे दिया और वहीं बस गया।

भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त मेजर, जो रिश्तेदारों से मिलने के लिए अपने परिवार के साथ छुट्टी पर अमेरिका गए थे, वापस नहीं लौटे। उसके प्रस्थान से पहले, CI&S डिवीजन ने देखा था कि वे भारत में अपनी सभी चल संपत्ति का निपटान कर रहे थे और इस डिवीजन ने खतरे की घंटी बजाई। लेकिन उसके विदेश जाने पर रोक लगाने के लिए, कोई कार्यवाही नहीं की गई।

यूरोप में तैनात एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी, शराबी और जुआरी बन गया और उसने एक अमेरिकी लड़की के साथ संबंध विकसित किया, जो उम्र में उससे बहुत छोटी थी। उसका CIA से रिश्ता होने का संदेह था। अक्सर, वो कई दिनों तक कार्यालय नहीं आता, और मुख्यालय से उसे भेजे गए कोडेड ऑपरेशनल संदेशों पर ध्यान नहीं देता था। जब काओ उस स्टेशन पर गए, तो उनकी पत्नी ने, उनसे गुप्त रूप से मुलाकात की और उनसे अपने पति को वापस दिल्ली स्थानांतरित करने का अनुरोध किया। उन्होंने शिकायत की कि उनके पति की यूरोपियन पोस्टिंग ने, उनकी शादी को बर्बाद कर दिया। उसका वापस भारत तबादला कर दिया गया और उन्हें बाहर कर दिया गया।

दो अन्य सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी — उनमें से एक सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस अधिकारी का बेटा — शराब की लत के कारण विदेशी पोस्टिंग के लिए उनकी उपयुक्तता के बारे में प्रशिक्षण प्रभाग (ट्रेनिंग डिवीजन) द्वारा व्यक्त की गई आपत्तियों के बावजूद, विदेश में भेजा गया। उसने संगठन (R&AW) का नाम खराब किया। उसे विदेशी पोस्टिंग से वापस बुलाना पड़ा और बाहर कर दिया गया। काओ के स्टाफ का एक सदस्य, जो अमेरिका में तैनात था, अपने कार्यकाल के अंत में वापिस नहीं लौटा।

इस सबने, R&AW में ट्रेड यूनियनवाद को जन्म दिया और 1980 में, इसके कर्मचारियों के एक वर्ग द्वारा हड़ताल की गई।

शंकर नायर के स्टाफ का एक सदस्य, जो UK में तैनात था, ने भी ऐसा ही किया। स्टाफ का एक अन्य कनिष्ठ (जूनियर) सदस्य अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, पश्चिमी यूरोप में बस गया। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने में R&AW के वरिष्ठ नेतृत्व की इच्छा शक्ति की कमी ने, रिआयती माहौल को और बढ़ावा दिया। इससे वरिष्ठ अधिकारियों की, उनके अधीनस्त कर्मचारियों की नजर में, छवि भी कमजोर हुई, जिससे अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिला।

इस सबने, R&AW में ट्रेड यूनियनवाद को जन्म दिया और 1980 में, इसके कर्मचारियों के एक वर्ग द्वारा हड़ताल की गई। हड़ताल के चालू होने का तत्काल कारण CI&S के कर्मचारियों द्वारा, एक ब्रांच (शाखा) की सुरक्षा जांच थी। शाखा के सदस्यों ने विरोध किया और डिवीजन के प्रमुख सहित CI&S के स्टाफ का घेराव किया। अंततः R&AW को उन्हें मुक्त कराने के लिए, दिल्ली पुलिस की मदद लेनी पड़ी। हड़ताल कुछ दिनों तक जारी रही — गेट के बाहर प्रदर्शन, जुलूस और बैठकें हुईं, जिनमें वरिष्ठ अधिकारियों की आलोचना करने वाले भाषण दिए गए। ऐसी गतिविधियों के समन्वय के लिए एक R&AW कर्मचारी संघ अस्तित्व में आया।

कोई भी सोच सकता था कि इन घटनाक्रमों ने, इंदिरा गांधी के मन में, संतोक के R&AW प्रमुख बने रहने की उपयुक्तता के बारे में संदेह पैदा कर दिया होगा। लेकिन ऐसा नहीं था। कर्मचारियों की अनुशासनहीनता के ऐसे मामले केवल R&AW तक ही सीमित नहीं थे। IB और CBI भी प्रभावित थी – हालांकि R&AW जितनी नहीं। काओ की कथित सलाह पर, इंदिरा गांधी ने अनुशासनहीनता को कम करने और R&AW के कामकाज में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए, संतोक के प्रयासों को मजबूत समर्थन दिया।

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संतोक ने ‘साम दाम दंड भेद’ (Carrot and Stick) की नीति के माध्यम से स्थिति को चतुराई से संभाला — गुट के नेताओं को बर्खास्त करना और कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण के लिए कार्यवाही — अंततः हड़ताल विफल हो गई।

R&AW और आई.बी. संयुक्त रूप से कार्य करते हुए, खुफिया समुदाय (इंटेलिजेंस कम्युनिटी) में ट्रेड यूनियनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए, सरकार को मनाने में कामयाब रहे।

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