केरन सेक्टर में घुसपैठ का खुलासा 23 सितम्बर को हुआ लेकिन पाकिस्तान की यह कवायद और कितने दिनों पहले से चल रही थी, इसका पता किसी को नहीं चला। इस तरह, यह इंटेलिजेंस की नाकामी का भी मामला है। यह सही है कि जमीनी हालात वहां बहुत दुष्कर हैं। यहां के पहाड़ों की ऊंचाई 10 से 12 फीट है। जंगली इलाका है और इस क्षेत्र के चप्पे-चप्पे की सुरक्षा प्रदान करना, सेना के लिए मुश्किल है। इसकी हजारों फीट की ऊंचाई पर बकरवाल अपने मवेशियों को चराने ले जाते हैं और शीत ऋतु में नीचे चले आते हैं। ऐसे में वह इलाका खाली पड़ जाता है, जहां घुसपैठिये अड्डा जमाये हुए थे। यह एक तरह से करगिल दोहराने की पाकिस्तानी सेना की कोशिश लगती है। हालांकि हमारी सेना इस तुलना से सहमत नहीं है। यहीं पाकिस्तानी सेना के इशारे और आईएसआई के षड्यंत्र से आतंकवादियों ने घुसपैठ की। भारतीय सेना ने इसकी तादाद 30- 40 बताई है लेकिन मेरा अनुमान है कि उनकी गिनती ज्यादा रही होगी और संभवत: वे अलग- अलग चोटियों पर घात लगाए बैठे रहे हों।
जो लोग नवाज शरीफ से उम्मीद लगाए बैठे हैं, उन्हें भ्रम से बाहर आने की जरूरत है। नवाज का मकसद भी वही है, जो पाकिस्तान की सियासत से जुड़े अन्य लोगों का है। उनकी सोच है कि घुसपैठ जारी रखें, बातचीत भी करते रहें और इसकी आड़ में बहुत सारी छूट ले लें। पाकिस्तान-पंजाब में जिंदा रहने के लिए चाहे वह नवाज हों या कोई और जो जेहादी फैक्टरी है, पाकिस्तानी सेना है और उसकी आईएसआई है, उसकी छतछ्राया में रहना मजबूरी है।
इस बीच, प्रधानमंत्री की तीनों सेनाध्यक्षों से मुलाकात परिस्थिति की गंभीरता बताती है। मेरा अनुमान है कि सेनाध्यक्षों ने ही विकट सरजमीनी हालात के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी देने के लिए अपनी तरफ से पहल की होगी। उन्हें बताया होगा कि फौरी एक्शन लेने की जरूरत है। ध्यान दें कि केरन सेक्टर में घुसपैठ की सूचना देश से दबा दी गई जबकि इसके बाद हीरानगर और सांबा में हुए हमलों की जानकारी दी गई। इसलिए कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ से बात करने के लिए बहुत उतावले हो रहे थे। जबकि उनके ही कार्यकाल में सुरक्षा पर तनाव/दबाव बेतरह बढ़े हैं। इसलिए कि हमारे प्रधानमंत्री बयान में और डॉयलॉग में विश्वास करते हैं। इसके इतर उनसे कुछ हो नहीं पाता है। इस लिहाज से समस्या बढ़ती जाती है।
भारतीय सरजमीं पर केरन जैसे हमले होते रहने के पीछे हमारी कमजोरी है। हम हमले के विरुद्ध हमले या प्रति-आक्रमण की योजना नहीं बना पा रहे हैं। इसके बजाय अपने इलाके की हिफाजत में लगे हुए हैं। यह ठीक है कि इतने दुर्गम इलाके के चप्पे-चप्पे पर सेना की तैनाती नहीं की जा सकती पर चौकस तो रहा ही जा सकता है। दूसरा, हम अपनी सेना, खासकर, थल सेना को धीरे-धीरे खोखला करते जा रहे हैं। आधुनिकीकरण का काम बिल्कुल रुका हुआ है, जबकि मोर्र्चे पर नई चुनौतियों के मद्देनजर उसे नई तकनीक की तत्काल जरूरत है। सेना के लिए एक इंटेलिजेंस यूनिट बनाई गई थी। उसका मकसद था कि सीमा पार तैनात पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और जेहादियों के बीच होने वाली बातचीत को सुनकर, उनमें से काम की सूचनाओं को एकत्र कर उनका रणनीतिक उपयोग करना। सेना को ऐसी ही कई और यूनिटों की जरूरत है। लेकिन हमने समाधान यह निकाला कि व्यक्ति विशेष को राजनीतिक विवाद में घसीट कर वह यूनिट ही ठप कर दी। हमारी इंटेलिजेंस कमजोर हो गई। ऐसा करके हमने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।
ताजा घुसपैठ का तात्कालिक कारण यह है कि पाकिस्तान की जेहादी फैक्टरी, जो अफगानिस्तान में खाली हो रही है, उसको वहां से उठाकर भारत के खिलाफ लगाना है। कश्मीर उसकी शुरुआत है। पाकिस्तान कश्मीर को एक दूसरा अफगानिस्तान बनाना चाहता है। वहीं चीन भी चाहता है कि कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान उसे सौंप दे। दूसरे पाकिस्तान को लगता है कि अगर पूरा कश्मीर उसके अधीन हो जाए तो यहां से निकलने नदियों के पानी का वह अकेला ही उपयोग कर सकेगा। इसके समेत कई कारण हैं, जिनके चलते जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ होती रहेगी और आक्रामक तरीके से बढ़ती रहेगी..अगर इसका करारा जवाब न दिया गया तो आने वाले समय में हमारी उत्तरी सीमा पर दूसरा अफगानिस्तान बन जाएगा। हमारे प्रधानमंत्री अपने पूरे कार्यकाल में डॉयलॉग-डॉयलॉग कर पाकिस्तान और चीन को कमजोर सिग्नल देते रहे हैं। चीन हमारी जमीन हड़प रहा है, वहीं पाकिस्तान का मंसूबा कश्मीर में इतनी आतंकवादी घटनाएं बढ़ा देने का है कि वह अफगानिस्तान बन जाए और भारत उसको सौंपने पर मजबूर हो जाए। पाकिस्तान के हमले भारतीय सेना के जवानों पर हो रहे हैं। भारतीय सेना को कमजोर करने और उसके हाथ बांधने के लिए डॉ मनमोहन सिंह की नीतियां और उनके सहयोगी जिम्मेदार हैं। जब तक हमारी टुकड़ी घुसपैठ होने वाले क्षेत्रों में पाकिस्तान की घेराबंदी नहीं करेंगी, पाकिस्तान को समानांतर नुकसान नहीं पहुंचाएंगी, घुसपैठ रुकेगी नहीं।
जो मनमोहन सिंह कर रहे हैं, उसको रणनीति नहीं कहते। उसे कहते हैं कि आ बैल मुझे मार। हमारे पास बहुत सारे विकल्प हैं कि जिनको आजमा कर हम पाकिस्तान को आतंकवाद की कड़ी कीमत चुकवा सकते हैं।
इसके बजाय कहा जा रहा है कि नॉन स्टेट एक्टर का काम है, घुसपैठ या आतंकवादी वारदातों को अंजाम देना। इससे हमारी समझ और लड़ाई कमजोर होती है। पाकिस्तान में एक नियमित सेना है। दूसरे, सेना के मातहत कई समूह हैं। तीसरे, आईएसआई के अधीन कट्टरपंथियों की जेहादी फैक्टरी है। तो जो रेगुलर आर्मी है और जो जेहादी फैक्टरी है, जिसे हम नॉन स्टेट एक्टर या गुरिल्ला आर्मी कह सकते हैं, ये दोनों एक ही हैं। उनका मकसद एक है। वे अलग-अलग तरीके से अलग-अलग मौकों पर इस्तेमाल किए जाते हैं। दूसरी बात पाकिस्तान के एम्बेसडर ने जो कही कि पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ नहीं हुई है, वह गलत है। सीमा पार चप्पे-चप्पे पर पाकिस्तानी सेना तैनात है। इसलिए उस तरफ से बिना पाक आर्मी, इंटेलिजेंस की मदद से पत्ता भी नहीं हिल सकता है।
जो लोग नवाज शरीफ से उम्मीद लगाए बैठे हैं, उन्हें भ्रम से बाहर आने की जरूरत है। नवाज का मकसद भी वही है, जो पाकिस्तान की सियासत से जुड़े अन्य लोगों का है। उनकी सोच है कि घुसपैठ जारी रखें, बातचीत भी करते रहें और इसकी आड़ में बहुत सारी छूट ले लें। पाकिस्तान-पंजाब में जिंदा रहने के लिए चाहे वह नवाज हों या कोई और जो जेहादी फैक्टरी है, पाकिस्तानी सेना है और उसकी आईएसआई है, उसकी छतछ्राया में रहना मजबूरी है। ऐसे में यह सोचना कि भारत के लिए कि नवाज शरीफ सेना और जेहादी फैक्टरी से कुछ इतर करेंगे, ठीक नहीं है। इस तरह के कड़े सच को छिपाने के लिए हमारी संस्कृति में लॉजिक ऑफ कन्वेंनियंस है। हम लोगों को अलग-अलग कोष्ठकों में बांट कर उनके बारे में ख्यालात बना लेते हैं ताकि सच अपने विद्रूप रूप में दिखना बंद हो जाए।
केरन सेक्टर में जो वाकयात उजागर हुए, तभी डॉ मनमोहन सिंह को न्यूयार्क में नवाज से बातचीत ड्रॉप कर देनी चाहिए थी। इसका कठोर सिग्नल जाता लेकिन उन्होंने आत्म और देश सम्मान की खातिर भी बातचीत बंद नहीं की। कूटनीति में और जमीन पर डॉयलॉग और डंडा एक साथ चलता है। हर चीज का एक समय होता है। यह समय डंडा चलाने और डॉयलाग बंद करने का है। जब डंडा लगेगा, चोट लगेगी तो सामने वाला जो अभी तक आपको तोड़ने की कोशिश कर रहा था, आपके साथ बातचीत की मेज पर लौटेगा। तो कूटनीति इसको कहते हैं। जो मनमोहन सिंह कर रहे हैं, उसको रणनीति नहीं कहते। उसे कहते हैं कि आ बैल मुझे मार। हमारे पास बहुत सारे विकल्प हैं कि जिनको आजमा कर हम पाकिस्तान को आतंकवाद की कड़ी कीमत चुकवा सकते हैं। दूसरे यह कि हमें अपनी सेना को हमेशा तैयार रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो पाकिस्तान या चीन के हमले कर देने पर हम क्या करेंगे?